कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे “मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे غزل: بلکتے بچوں کو جا کے دیکھوں بِلکتے بچوں کو جا کے دیکھوں، بے گور لاشے اُٹھا کے دیکھوں मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले मेरे कमरे में किताबों के https://youtu.be/Lug0ffByUck